हम क्यों कहते हैं कि वचन देह में प्रकट होता है परमेश्वर के कथनों का संकलन है?
बाइबल से, हम सब यह देख सकते हैं कि चाहे वचनों को सीधे परमेश्वर की आत्मा द्वारा बोला गया हो, किसी भविष्यवक्ता के माध्यम से वे संप्रेषित हुए हों, या प्रभु यीशु की छवि के माध्यम से परमेश्वर के द्वारा कहे गए हों, वे सभी परमेश्वर के ही कथन हैं। परमेश्वर के कोई भी वचन लोगों को उनके अधिकार और शक्ति को समझने में, और इसे समझने में सक्षम बनाते हैं कि वे सभी सत्य हैं; यह निर्विवाद होता है। वे सभी लोग जो परमेश्वर के वचनों को अक्सर पढ़ते हैं, उनके अधिकार, उनकी सर्वशक्तिमानता और उनकी बुद्धि की, साथ ही उनके धर्मी स्वभाव की, अभिव्यक्तियों को देख सकते हैं; इस तरह, परमेश्वर की पहचान और स्थिति स्पष्ट रूप से उनके वचनों में परिलक्षित होती हैं। वचन देह में प्रकट होता है, परमेश्वर के दूसरे देहधारण द्वारा व्यक्त किए गए उन वचनों का एक संकलन है, जो अनुग्रह के युग में परमेश्वर के द्वारा मानवजाति के उद्धार का काम पूरा करने के बाद और आधिकारिक तौर पर अंतिम दिनों में, अपने ही घर से प्रारंभ कर, न्याय का काम शुरू करने के बाद बोले गए थे। ये वचन वो वचन हैं जिन्हें परमेश्वर ने अंतिम दिनों में समग्र मानवजाति के प्रति कहे थे। सर्वशक्तिमान परमेश्वर इन वचनों में परमेश्वर की छह हजार साल की प्रबंधन योजना के रहस्य को, उनके तीन चरणों के कार्य के उद्देश्य और महत्व को, उनके देहधारण के रहस्य को, अंतिम दिनों में न्याय के रहस्य को, और मानव जाति के अंत के रहस्य तथा गंतव्य को उजागर करते हैं; शैतान द्वारा मानवजाति को भ्रष्ट करने के सार और सच्चाई को भी वे प्रकट करते हैं और मानवजाति को सत्य का अभ्यास करने और अपने जीवन-स्वभावों में परिवर्तन प्राप्त करने का मार्ग दिखाते हैं; इत्यादि—और इनसे प्रकाशित वाक्य की ये भविष्यवाणियाँ पूरी होती हैं: "जिसके कान हों वह सुन ले कि आत्मा कलीसियाओं से क्या कहता है" (प्रकाशितवाक्य 2:7)। "जो सिंहासन पर बैठा था, मैं ने उसके दाहिने हाथ में एक पुस्तक देखी जो भीतर और बाहर लिखी हुई थी, और वह सात मुहर लगाकर बन्द की गई थी। फिर मैं ने एक बलवन्त स्वर्गदूत को देखा जो ऊँचे वचन से यह प्रचार करता था, 'इस पुस्तक के खोलने और उसकी मुहरें तोड़ने के योग्य कौन है?' परन्तु न स्वर्ग में, न पृथ्वी पर, न पृथ्वी के नीचे कोई उस पुस्तक को खोलने या उस पर दृष्टि डालने के योग्य निकला। तब मैं फूट फूटकर रोने लगा, क्योंकि उस पुस्तक के खोलने या उस पर दृष्टि डालने के योग्य कोई न मिला। इस पर उन प्राचीनों में से एक ने मुझ से कहा, 'मत रो; देख, यहूदा के गोत्र का वह सिंह जो दाऊद का मूल है, उस पुस्तक को खोलने और उसकी सातों मुहरें तोड़ने के लिये जयवन्त हुआ है'" (प्रकाशितवाक्य 5:1-5)। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचनों ने प्रकाशित वाक्य पुस्तक की भविष्यवाणियों को पूरी तरह से सच कर दिया है। केवल परमेश्वर ही अपनी प्रबंधन योजना के रहस्य को उजागर कर सकते हैं, और केवल परमेश्वर, सृष्टिकर्ता की अपनी पहचान में, सभी मानव जाति के प्रति अपने कथनों को कह सकते हैं, मानव जाति की भ्रष्टता की सच्चाई का न्याय कर सकते हैं और उसे प्रकट कर सकते हैं, और सभी विभिन्न प्रकार के लोगों के लिए अंत और गंतव्यों को निर्धारित कर सकते हैं। सर्वशक्तिमान परमेश्वर के कथनों में सत्ता और शक्ति होती है, और प्रत्येक वचन परमेश्वर के पास क्या है और वो क्या है, इसे दर्शाता है। इसलिए हम यह दृढ़तापूर्वक कह सकते हैं कि सर्वशक्तिमान परमेश्वर द्वारा व्यक्त वचन देह में प्रकट होता है, परमेश्वर के द्वारा अंतिम दिनों में सम्पूर्ण मानवजाति से कहे गए वचनों का, और साथ ही पवित्र आत्मा द्वारा कलीसियाओं के प्रति कहे गए वचनों का, संकलन है।
हर बार जब बोलने के लिए परमेश्वर देह बनते हैं, तो वे हमेशा ऐसे वचनों को कहते हैं जो मनुष्यों को डाँटते और उनसे मांग करते हों, ऐसे वचनों को जो भ्रष्ट मनुष्यों का न्याय और उनकी ताड़ना करते और उन्हें उजागर करते हों, और साथ ही साथ उन वचनों को भी जो उनसे वादे करते हों, इत्यादि। परमेश्वर के सारे वचन सत्य, मार्ग और जीवन की अभिव्यक्तियाँ हैं; वे उनके जीवन-सार के प्रकटन हैं, जो उनके स्वभाव का तथा उनके पास क्या है और वे क्या हैं, इनका प्रतिनिधित्व करते हैं। यह वैसा ही है जैसा कि प्रभु यीशु ने अपने कार्य को करने के लिए कई वचनों को व्यक्त किया था। उदाहरण के लिए: "मन फिराओ क्योंकि स्वर्ग का राज्य निकट आया है" (मत्ती 4:17)। "तू परमेश्वर अपने प्रभु से अपने सारे मन और अपने सारे प्राण और अपनी सारी बुद्धि के साथ प्रेम रख। बड़ी और मुख्य आज्ञा तो यही है। और उसी के समान यह दूसरी भी है कि तू अपने पड़ोसी से अपने समान प्रेम रख। ये ही दो आज्ञाएँ सारी व्यवस्था और भविष्यद्वक्ताओं का आधार हैं" (मत्ती 22:37-40)। "हे कपटी शास्त्रियो और फरीसियो, तुम पर हाय! तुम मनुष्यों के लिए स्वर्ग के राज्य का द्वार बन्द करते हो, न तो स्वयं ही उसमें प्रवेश करते हो और न उस में प्रवेश करनेवालों को प्रवेश करने देते हो" (मत्ती 23:13)। प्रभु यीशु के वचनों में परमेश्वर द्वारा मनुष्यों से की गईं माँगों के साथ-साथ उनके प्रति न्याय के वचन भी शामिल हैं। ये सभी वचन परमेश्वर द्वारा मनुष्यों के प्रति सृष्टिकर्ता की अपनी पहचान में बोले गए थे, और प्रभु यीशु द्वारा व्यक्त किए गए वचनों से हम देख सकते हैं कि परमेश्वर के वचन सत्य हैं, कि वे आधिकारिक और शक्तिशाली हैं, और यह कि वे पूरी तरह से परमेश्वर की पहचान और स्थिति का प्रतिनिधित्व करते हैं। सर्वशक्तिमान परमेश्वर द्वारा कहे गए वचन प्रभु यीशु के वचनों के समान हैं; वे सब परमेश्वर के देहधारण के द्वारा मानवजाति के प्रति कहे गए वचन हैं, और वे पूरी तरह से उनकी पहचान और स्थिति को प्रकट करते हुए परमेश्वर के स्वभाव और पवित्र सार को व्यक्त करते हैं। सर्वशक्तिमान परमेश्वर न केवल परमेश्वर की छह हजार साल की प्रबंधन योजना के बारे में रहस्य को उजागर करते हैं, बल्कि सभी मानवजाति की भ्रष्टता के सार और स्रोत का भी खुलासा करते हैं और लोगों के दिल और दिमाग की उस भ्रष्टता को भी उजागर करते हैं, जिनके बारे में तो लोग जागरूक ही नहीं हैं। इन वचनों को पढ़ने पर, लोग उन्हें तहेदिल से स्वीकार करते हैं। साथ ही, सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन उन्हें शैतान के अंधेरे प्रभावों को दूर करने, शुद्ध होने और उद्धार प्राप्त करने का मार्ग दिखाते हैं, और ये वचन लोगों को उन सभी सच्चाइयों को बताते हैं जिनका उन्हें अभ्यास करना चाहिए और जिन्हें अपने विश्वास में दर्ज करना चाहिए, जैसे कि ईमानदार व्यक्ति कैसे बनें, परमेश्वर से प्रेम और उनके प्रति समर्पण कैसे करें, कैसे उनका भय मानें और बुराई से दूर रहें, कैसे उनकी सेवा करें, एक सामान्य मानवता को कैसे जीएँ, इत्यादि। अंतिम दिनों में सर्वशक्तिमान परमेश्वर द्वारा व्यक्त किए गए सत्य के सभी विभिन्न पहलू, प्रभु यीशु की भविष्यवाणी को पूरा और कार्यान्वित करते हैं: "मुझे तुम से और भी बहुत सी बातें कहनी हैं, परन्तु अभी तुम उन्हें सह नहीं सकते। परन्तु जब वह अर्थात् सत्य का आत्मा आएगा, तो तुम्हें सब सत्य का मार्ग बताएगा, क्योंकि वह अपनी ओर से न कहेगा परन्तु जो कुछ सुनेगा वही कहेगा, और आनेवाली बातें तुम्हें बताएगा" (यूहन्ना 16:12-13)। सृष्टिकर्ता के अलावा, कौन सारी सम्पूर्ण मानवजाति से बात कर सकता है? कौन सीधे तौर पर परमेश्वर की इच्छा को व्यक्त कर सकता है और मानवता से माँगें कर सकता है? परमेश्वर के अलावा, कौन भ्रष्ट मानवजाति की सच्चाई और सार को देख सकता है? मानव हृदय के सबसे गहरे कोनों में छिपी शैतानी प्रकृति को कौन उजागर कर सकता है? कौन अंतिम दिनों में परमेश्वर के न्याय के कार्य को पूरा कर सकता है और लोगों को शैतान के प्रभाव से पूरी तरह से बचा सकता है? कोई भी सुप्रसिद्ध या महान व्यक्ति, बुद्धिवादी या धर्मशास्त्री सत्य को व्यक्त नहीं कर सकता, न ही समस्त मानवजाति से बात कर सकता है, लोगों के भ्रष्ट सार के आर-पार देखना या उन्हें शैतान के क्षेत्र से बचाने की सम्भावना तो और भी कम होगी; केवल सृष्टिकर्ता के पास ही इस प्रकार का अधिकार और ऐसी शक्ति है! सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन, परमेश्वर के अद्वितीय अधिकार और शक्ति के पूर्ण प्रकटीकरण हैं; वे उसकी पहचान और सार की अभिव्यक्ति हैं। इसलिए, सर्वशक्तिमान परमेश्वर के वचन परमेश्वर के और पवित्र आत्मा के वचन हैं, और यह किसी भी संदेह से परे है।
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